kanchan singla

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मिट्टी से जीवन

मिट्टी मेरे जीवन का आधार है

इस मिट्टी में मैं बड़ा हुआ
इस मिट्टी से उपजा मैने खाया
इस मिट्टी को सींच कर भोजन बनाया
मैं मिट्टी से उपजा हूं
एक दिन मिट्टी में मिल जाऊंगा
सदियों से ऐसा होता आया है
मानव मिट्टी से जीते हैं और
आखिर में मिट्टी में मिल जाते हैं
ये तन जो मेरा अभी है रोशन
पुलकित इसका रोम रोम है
एक दिन होगा खाक जरूर
 फिर यह मिट्टी का ये हिस्सा होगा 
मिट्टी मेरी देह है
मैं मिट्टी का अंश हूं
नए कपोलें उगते मिट्टी में रोज
पुराने मिल जाते मिट्टी में
जीवन का आधार मिट्टी है
मिट्टी के लिए रोज लड़ते हैं जो
मिट्टी में ही मिल जाते हैं वो ।।


कॉपीराइट - कंचन 
लेखनी प्रतियोगिता -16-Jul-२०२२

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7 Comments

Seema Priyadarshini sahay

18-Jul-2022 04:28 PM

बहुत खूबसूरत

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Saba Rahman

17-Jul-2022 08:35 PM

Nice

Reply

Shnaya

17-Jul-2022 03:22 PM

बहुत खूब

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